Tuesday, August 18, 2009

भारत पुन: विश्व गुरु बन सकता है .....!

श्री राम
भारतीय संतों  ने सदैव इस धरती पर सत्य, न्याय एवं ईश्वर प्राप्ति के लिए अनेक प्रयोग किए हैं,
इस जनमानस मे जो भी अच्छाइयाँ हैं वो पूर्वजों द्वारा किए गये भागीरथी प्रयासों के कारण ही है ......
हम जीवन के इस मोड़ पर भारतीयता को नितांत अकेला विभिन्न बुराइयों से लड़ते हुए पाते हैं, जो जीवन के मूलतत्वों को भुलाकर पाश्चात्य के प्रभाव के आगे नतमस्तक है ......


"जब भी हम अपनी जड़ों को छोड़कर ऊपर उठते हैं हवा के हल्के झोंके से भी हमे डर लगता है"

वर्तमान परिस्थितियां इस राष्ट्र के विकास में न केवल बाधक वरन आम जन जीवन को
दिशा देने में भी सर्वथा असमर्थ हैं .

"पश्चिम की ओर देखते देखते पूरब ने भी सूर्य के अस्त होने का पूर्वाभास आरम्भ कर दिया है वही पूरब जो सदियों से विश्व को दिशा देता रहा खुद दिशाविहीन और पतित होने की राह पर चल रहा है..."

यदि हम अपने अन्दर की अध्यात्मिक शक्ति को पुन: जाग्रत कर एक स्थिर और आत्मविश्वास से युक्त परिवार एवं समाज का निर्माण कर सके  तभी इस राष्ट्र को उसके अद्भुत स्वरुप की ओर वापस ला सकते हैं ....

जीवन में आध्यात्म का होना वैसे ही आवश्यक है जैसे शरीर में प्राण ....आध्यात्म किसी धर्म या विचार से उत्पन्न नही होता वरन यह व्यक्ति विशेष के अंतर्मन में स्वयं व ईश्वर के बीच की दूरी को कम करने से स्वत: उत्पन्न होता है....

आज प्रत्येक भारतीय के जीवन मे स्थिरता एवं आत्मविश्‍वास की आवश्यकता सिर्फ़ इसलिए है क्योंकि हम अपनी जड़ों को छोड़कर बिना किसी आधार के आगे बढ़ रहे है....धर्म के नाम पर फैलता अंधविश्वास लोगों का आत्मविश्वास हिला चुका है...धर्म के मूल को समझने मात्र से यह अंधविश्वास समाप्त हो सकता है....निष्काम कर्म से पुन: लोगों का आत्मविश्वास लौट सकता है....

ऐसा मेरा पूर्ण विश्वास है भारत पुन: विश्व गुरु बन सकता है .....



श्री राम

Thursday, June 11, 2009

|| श्री राम ||


श्री राम


अनादि काल से संपूर्ण भारतवर्ष एवम विश्व में भारतीय मनीशियो का प्रादुर्भाव रहा है सभी ने इस देव भूमि पर अवतरित प्रभु श्री राम एवम् कृष्ण का वंदन किया है , प्रभु श्री राम मानवीय गुणों एवम् मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप मे जन जन में विद्यमान थे



समय का चक्र तेज़ी से बदलता रहा , जो राष्ट्र कभी भारतवर्ष को गौरवशाली एवम संतों की भूमि के रूप में प्रणाम करते थे आज समय के साथ बदल गये या दुनिया की नज़रों मे विकसित हो गये , पर हमने स्वयं को किस विकास के लिए बदल दिया ?


क्या अपनी धरती अपने प्रभु को भुलाकर कोई इंसान आत्मसम्मान से जीवित रह सकता है....? शायद नहीं ... भारतीयता एक जीवन जीने की कला है जिसे इस धरती पर अवतरित महापुरुषों ने सम्रद्ध किया है


आज के समय मे इस राष्ट्र की सार्थकता तभी सिद्ध हो सकती है जब हम ईश्वरीय आदेशों का धर्मनुसार पालन करें, पुन: जन जन में प्रभु द्वारा पालन की गयी मर्यादाओं का प्रतिस्थापन करें


श्री राम